शायद

" शायद " 



अब जब भी किसी को छूउँगा तब-तब याद 

इस जेहन में तेरी ही आएगी,

जो दिल को मेरे अब और रुलायेगी ।

 

यकीन तेरा कर मैं फिर बह गया ,

 खुद की नजरों में ही इस बार 

मैं कुछ गिर सा गया ।


न थी बदली तू , 

ना बदला तेरा प्यार था 

अब ये मंजर भी देखना मेरे  लिए कुछ आम सा था ।


संदेह अब भी है इस दिल को मेरे,

की, क्या सच मे तुझे मुझ से कभी प्यार भी था 

 या , बस कुछ तुझपर भी जुनून भूत सा वो सवार था ।

 

लगता था बरस पहले शायद मैं ही तुझे समझ नही पा रहा हूँ, 

फिर लगा जैसे खुद को पाने की तलाश  में 

कहीं तुझे ही तो नहीं खो रहा हूँ।


मगर ,

मगर जब चला पता मुझे यूँ,

की न तुझे प्यार था ना कभी तुझे इससे इकरार था 

शायद वो जो भी था बस यूं ही

 कुछ तेरे लिए हमेशा की तरह बस  timepass  था ।


अब 

जब भी याद करता हूं, 

लम्हो को उन जो बिताये थे साथ मे मिलके कुछ यू हमने ,

तो ना जाने क्यों

 अब मन मेरा खुद मुझे ही अब क्यों ये कचोटता रहता हैं ।


यादों की बारात लिए अब चलता हूँ ढूंढने मंजिल अपनी 

लगता है छोड़ दु ये सब यहीं कही

और चल पडूँ तन्हा अकेला राहों में अपनी

पर फिर चेहरा तेरा उसमें नजर सा मुझे आता हैं ।


अब ना हैं तुझसे कोई वास्ता ए दिल  , 

ना ही है मन की हो रूबरू अब कहीं हम ।


ना सुनना मुझे अब कुछ और हैं ,  

और ना शायद  ही तुझे ,

मुझे कुछ बताना अब हैं।


बस एक तल्ख सी होती हैं अब सोचकर ये की,

जो कभी था तेरे मेरे दरमियाँ , 

क्या वो मंजर प्यार का ख़ुशनुमा जहाँ था ,

या वो भी थी बस कल्पना कोई


जिस में मैं बस जी रहा था।

      जिस में मैं बस जी रहा था......



आपके प्रतिक्रिया के प्रतीक्षा में 🙏 🤗


आपका अपना 

-harsh_मधुरज़०✍️

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