आईना
आज देख आईना , खुद से मैं मिल लिया
कुछ ना कहते हुएँ भी राज कई वो खोल गया।
लगा कुछ यूँ , की मिले हुएँ हुआ अरसा हमें
भीड़ में भी तन्हा बरसों देख ,
आज तन्हा इसके आगे देख बहने से खुद को न रोक सकें हम
तब-तक बोज़िल आँखों ने भी मानो तय ही ये कर लिया था ,
की बना आज रास्ता अब बह हमें आज जाना हैं ।
और यहाँ ,
गढ़ते हैं कसीदे आशिक इश्क में उनके ,
की आंखों से वे उनकी दुनियाँ उनमें बसा लेते हैं ।
ये आईना हैं जनाब ,
दुनियाँ को देख हम इन आंखों से लेते हैं ,
गर हो देखना खुद को साथ इसे ही पाते हैं।
-harsh_मधुरज़०✍️
अतिशय सुंदर रचना 👌👍
ReplyDeleteधन्यवाद मॅडम 🤗✌️
Deleteखूप छान लिहिलंय अप्रतिम रचना 👌👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद ताई 🤗✌️
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