" शायद " अब जब भी किसी को छूउँगा तब-तब याद इस जेहन में तेरी ही आएगी, जो दिल को मेरे अब और रुलायेगी । यकीन तेरा कर मैं फिर बह गया , खुद की नजरों में ही इस बार मैं कुछ गिर सा गया । न थी बदली तू , ना बदला तेरा प्यार था अब ये मंजर भी देखना मेरे लिए कुछ आम सा था । संदेह अब भी है इस दिल को मेरे, की, क्या सच मे तुझे मुझ से कभी प्यार भी था या , बस कुछ तुझपर भी जुनून भूत सा वो सवार था । लगता था बरस पहले शायद मैं ही तुझे समझ नही पा रहा हूँ, फिर लगा जैसे खुद को पाने की तलाश में कहीं तुझे ही तो नहीं खो रहा हूँ। मगर , मगर जब चला पता मुझे यूँ, की न तुझे प्यार था ना कभी तुझे इससे इकरार था शायद वो जो भी था बस यूं ही कुछ तेरे लिए हमेशा की तरह बस timepass था । अब जब भी याद करता हूं, लम्हो को उन जो बिताये थे साथ मे मिलके कुछ यू हमने , तो ना जाने क्यों अब मन मेरा खुद मुझे ही अब क्यों ये कचोटता रहता हैं । यादों की बारात लिए अब चलता हूँ ढूंढने मंजिल अपनी लगता है छोड़ दु य...
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